
होली की लोकधुनों पर गूंजा डॉ. वेद मित्र का वंशीवादन… देखें Video
घंटाघर प्रांगण में हुआ रंगारंग सांस्कृतिक आयोजन
होली 2025 : बहराइच। होली के रंगों में घुली बांसुरी की सुरमयी तान ने शुक्रवार को बहराइच के घंटाघर प्रांगण में मौजूद श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। केंद्रीय होली समिति द्वारा आयोजित इस भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम की शुरुआत सुविख्यात वंशीवादक डॉ. वेद मित्र शुक्ल के लोकधुनों से हुई। जैसे ही उन्होंने अपनी बांसुरी से “होरी खेले रघुवीरा अवध मा” और “जमुना तट श्याम खेलें होरी” की धुनें छेड़ीं, माहौल भक्तिमय और संगीतमय हो उठा।
शिष्य मनमीत ने भी दिखाया हुनर

डॉ. वेद मित्र के शिष्य मनमीत ने भी इस संगीतमयी शाम को और खास बना दिया। उन्होंने अपने गुरु के साथ चैती, होरी, धमार जैसी पारंपरिक धुनों को बांसुरी पर प्रस्तुत किया, जिससे श्रोताओं को शास्त्रीय संगीत की गहराइयों का अहसास हुआ।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बज चुकी है वेद मित्र की बांसुरी
डॉ. वेद मित्र शुक्ल, प्रसिद्ध बंसीवादक पं. केदारनाथ मिश्र “दद्दू महाराज” के शिष्य हैं और अपने गुरु की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं। वे दूरदर्शन और आकाशवाणी समेत देश-विदेश के कई प्रतिष्ठित मंचों पर अपनी कला का प्रदर्शन कर चुके हैं। उनका वंशीवादन लोक और शास्त्रीय संगीत का अद्भुत संगम होता है, जिससे श्रोता एक अलग ही भावनात्मक यात्रा पर निकल पड़ते हैं।
फिल्म सेंसर बोर्ड के सदस्य हैं डॉ. शुक्ल

संगीत के क्षेत्र में योगदान देने के साथ ही डॉ. वेद मित्र शुक्ल भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सेंसर बोर्ड) के सलाहकार सदस्य भी हैं। इस पद पर रहते हुए वे भारतीय फिल्मों की गुणवत्ता और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए काम कर रहे हैं।
सांस्कृतिक विरासत को जीवंत रख रहे वेद मित्र
वंशीवादन की गुरु-शिष्य परंपरा को आगे बढ़ाते हुए डॉ. शुक्ल स्थानीय स्तर पर भी शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार में सक्रिय हैं। वे न केवल अपने शिष्यों को प्रशिक्षित कर रहे हैं बल्कि भारतीय लोकसंस्कृति को भी संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
होली के उल्लास में सुरों का अनोखा संगम
बहराइच में हर साल आयोजित होने वाला यह सांस्कृतिक कार्यक्रम इस बार संगीत प्रेमियों के लिए खास बन गया। डॉ. वेद मित्र और उनके शिष्यों की प्रस्तुति ने यह साबित कर दिया कि भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोकधुनों का सम्मिलन न केवल सुनने में मधुर होता है बल्कि आत्मा तक गूंजता है।