फखरपुर के दिव्यांग नौशाद को नहीं मिला योजना का लाभ, ट्राई साइकिल के लिए वर्षों से कर रहा इंतजार
सरकारी योजनाएं कागज़ों तक सिमटीं, कोठवल कला गांव के नौशाद आज भी डंडे के सहारे चलने को मजबूर
- फखरपुर के दिव्यांग नौशाद को नहीं मिला योजना का लाभ, ट्राई साइकिल के लिए वर्षों से कर रहा इंतजार
- सरकारी योजनाएं कागज़ों तक सिमटीं, कोठवल कला गांव के नौशाद आज भी डंडे के सहारे चलने को मजबूर
रिपोर्ट: अशोक सोनी : कैसरगंज : बहराइच। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के फखरपुर ब्लॉक के कोठवल कला गांव में रहने वाले दिव्यांग युवक नौशाद अहमद की ज़िंदगी सरकार की योजनाओं से दूर सिर्फ़ इंतजार और संघर्ष में बीत रही है। वर्षों से वह ट्राई साइकिल की मांग कर रहे हैं, लेकिन अफसरों और जनप्रतिनिधियों के दरवाज़े खटखटाने के बाद भी उन्हें अब तक कोई मदद नहीं मिली। यह मामला न केवल सिस्टम की संवेदनहीनता को उजागर करता है, बल्कि यह भी सवाल उठाता है कि क्या वाकई सरकार की दिव्यांगजन योजनाएं ज़मीन पर लागू हो रही हैं?
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विकलांगता बना बेबसी का कारण

नौशाद अहमद, जो ग्राम पंचायत कोठवल कला निवासी हैं, अपने पैरों की कमजोरी के कारण चलने-फिरने में असमर्थ हैं। उन्हें एक सरकारी ट्राई साइकिल की आवश्यकता है ताकि वह रोजमर्रा के कार्यों के लिए स्वतंत्र रूप से कहीं आ-जा सकें। मगर उन्हें अभी तक किसी भी सरकारी योजना का लाभ नहीं मिल सका।
कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से गुहार
नौशाद ने बताया कि उन्होंने कई बार संबंधित अधिकारियों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से मुलाकात की, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला। किसी ने भी इस समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। मजबूरी में आज भी वह डंडे और वैशाखी के सहारे ही इधर-उधर जाने को मजबूर हैं।
कहीं कागज़ों में तो नहीं फंसी ट्राई साइकिल?
सरकार की ओर से दिव्यांगों को ट्राई साइकिल, व्हीलचेयर, और अन्य सहायक उपकरण दिए जाने की कई योजनाएं चल रही हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि जब ज़रूरतमंद को उसका लाभ नहीं मिल पा रहा, तो आखिर वो मदद जा कहां रही है?
प्रशासन से गुहार, मीडिया से उम्मीद
अब नौशाद को प्रशासन और मीडिया दोनों से उम्मीद है कि उनकी आवाज़ ऊपर तक पहुंचे और उन्हें जल्द से जल्द ट्राई साइकिल मुहैया कराई जाए, ताकि वे भी सामान्य जीवन जीने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ सकें।
गौरतलब हो कि यह घटना बहराइच प्रशासन और समाज कल्याण विभाग के लिए एक चेतावनी है कि योजनाओं का लाभ वास्तविक ज़रूरतमंदों तक पहुंचे, तभी “सबका साथ, सबका विकास” जैसे नारे सार्थक होंगे। नौशाद अहमद जैसे दिव्यांगों को सिर्फ योजना नहीं, सम्मान के साथ जीने का अधिकार भी मिलना चाहिए।
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