जरवल की फिजाओं में गूंजीं या सैय्यादी या अब्बास की सदाएं
मोहर्रम के जुलूस में जोश, मातम और अकीदत का अनूठा संगम
- जरवल की फिजाओं में गूंजीं या सैय्यादी या अब्बास की सदाएं
- मोहर्रम के जुलूस में जोश, मातम और अकीदत का अनूठा संगम
रिपोर्ट : अशोक सोनी : कैसरगंज : बहराइच। जरवल की फिजाएं मातम, अकीदत और नौहों की सदा से गूंज उठीं। आठवीं मोहर्रम के मौके पर कस्बा जरवल में पुरानी परंपरा के अनुसार जुलूस-ए-अज़ा निकाला गया। दिनभर मजलिसों का सिलसिला जारी रहा और रात्रि को “या सैय्यादी या अब्बास” की सदाओं ने माहौल को गमगीन कर दिया।

इसके बाद अंजुमन हुसैनिया असगरिया ने पारंपरिक जुलूस निकाला। यह जुलूस मोमिनीन के घरों से अलम उठाता हुआ अपने पुराने कदीमी रास्तों से होता हुआ शाकिर जरवली के अज़ाखाने पहुंचा। फिर यह जुलूस मौलाना ताहिर जरवली के अज़ाखाने से गुज़रा और घोसियाना मार्ग से होता हुआ कटरा स्थित इमामबाड़ा मिर्जा लियाकत हुसैन मरहूम तक पहुंचा।
यहां अंजुमन सक़्क़ा-ए-हरम ने अलम बरामद कर जुलूस में शिरकत की। “ज़ाकिर मंज़िल” (मकान सैयद जाफर मेहंदी एडवोकेट) से जनाबे अब्बास की शबीहे दुलदुल बरामद की गई। फिर जुलूस अपने रिवायती शान-ओ-शौकत के साथ कर्बला जरवल के लिए रवाना हुआ।
कर्बला पहुंचकर (रात 12:30 बजे) दरिया किनारे स्थित जनाबे अब्बास के रोजे से अलम निकाला गया जो जनाबे ज़ैनब और फिर इमामे हुसैन के रोजे से होता हुआ वापस कदीमी रूट से इमामबाड़ा मिर्जा लियाकत हुसैन पहुंचा। फिर यह जुलूस अहमद शाह बाबा की मज़ार और अन्य मोमिनीन के अज़ाखानों से गुज़रता हुआ भोर तक जारी रहा।
सुबह के वक़्त यह जुलूस कटरा स्थित कल्बे हुसैन के मकान पहुंचा और फिर दोपहर 12:00 बजे “ज़ाकिर मंज़िल” (सैयद जाफर मेहंदी एडवोकेट) पर समाप्त हुआ, जहां अंजुमनों ने नौहाख़्वानी और सीनाज़नी कर कर्बला की याद ताज़ा की।
मुख्य आकर्षण
- पारंपरिक कदीमी रूट पर निकला जुलूस-ए-अज़ा
- मौलाना जाफर मेहंदी का प्रभावशाली खिताब
- अंजुमन हुसैनिया असगरिया और सक़्क़ा-ए-हरम की भावभीनी पेशकश
- जनाबे अब्बास की शबीहे दुलदुल की बरामदगी
- दरिया किनारे स्थित रोजों से जुड़ी रिवायती रस्में