अधीनस्थ शिक्षा सेवा नियमावली में संशोधन को चुनौती, हाई कोर्ट ने राज्य सरकार और चयन आयोग से मांगा जवाब
याचिका में कहा गया है कि एनसीटीई विनियमों के तहत बी.एड. एक अनिवार्य योग्यता है। संशोधित नियमों में सहायक अध्यापक कंप्यूटर के लिए इसे समाप्त करना कानून के विपरीत है। याचियों का कहना है कि 2014 के एनसीटीई रेगुलेशन में भी एक अलग पाठ्यक्रम का प्रावधान हैं।
अधीनस्थ शिक्षा सेवा नियमावली में संशोधन को चुनौती , हाई कोर्ट ने राज्य सरकार और चयन आयोग से मांगा जवाब
- रिपोर्ट : मुकेश कुमार : क्राइम एडिटर इन चीफ : प्रयागराज , उत्तर प्रदेश।
उत्तर प्रदेश अधीनस्थ शैक्षिक सेवा नियमावली, 1983 में किए गए संशोधन को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है।
संशोधित नियमावली में सहायक अध्यापक कंप्यूटर के पद पर नियुक्ति के लिए b.ed की अनिवार्यता को समाप्त कर अधिमान्य योग्यता बना दिया गया हैं।
इसे लेकर प्रवीण सिंह और दो अन्य ने याचिका दाखिल की हैं। न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्याय मूर्ति प्रवीण कुमार गिरी की खंडपीठ ने राज्य सरकार और चयन आयोग से जवाब मांगा है।
क्योंकि याचिका में कानून की वैधता को चुनौती दी गई है, इसलिए कोर्ट ने महाधिवक्ता को भी नोटिस जारी किया हैं।
याचिका में कहा गया है कि एनसीटीई विनियमों के तहत b.ed एक अनिवार्य योग्यता है।
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संशोधित नियमों में सहायक अध्यापक कंप्यूटर के लिए इसे समाप्त करना कानून के विपरीत है। याचियों का कहना है कि 2014 के एनसीटीई रेगुलेशन में भी एक अलग पाठ्यक्रम का प्रावधान है।
नई संशोधन से विरोधाभास पैदा हो गया हैं। कोर्ट में इस मामले में सभी पक्षों को दो सप्ताह में जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया हैं।
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश अधीनस्थ शिक्षा सेवा नियमावली 1983 को संशोधित कर उत्तर प्रदेश अधीनस्थ शिक्षा नियमावली 2024 तैयार की है।
जिसका गजट नोटिफिकेशन 30 जनवरी 2025 को जारी किया गया हैं। एनसीटीई के प्रावधानों के अनुसार, राज्य सरकारें अर्हता संबंधी नियमों में छूट प्रदान नहीं कर सकती है।
एनसीटीई के नियमों के अनुसार, प्रशिक्षित स्नातक श्रेणी के शिक्षकों की भर्ती के लिए b.ed अनिवार्य है। लेकिन उत्तर प्रदेश अधीनस्थ शिक्षा नियमावली 2024 में उत्तर प्रदेश अधीनस्थ शिक्षा सेवा नियमावली 1983 को संशोधित कर कंप्यूटर विषय के लिए b.ed की अर्हता की अनिवार्यता को समाप्त कर उसकी जगह अधिमानी कर दिया गया है।
याचियों का कहना है कि यह एनसीटीई रेगुलेशन के विपरीत हैं।
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