गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामले में 6 आरोपियों को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी

पीठ ने कहा है कि सामूहिक झड़पों के मामले में जहां बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। अदालतों पर यह सुनिश्चित करने का भारी दायित्व होता है कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को दोषी न ठहराया जाए और उसकी स्वतंत्रता से वंचित न किया जाए। जस्टिस मिश्रा ने कहा है कि ऐसे मामलों में अदालत को सावधान रहना चाहिए और उनके भाव की गवाही पर भरोसा करने से बचना चाहिए जो आरोपियों उसकी भूमिका का विशेष संदर्भ दिए बिना सामान्य बयान देते हैं।

गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामले में 6 आरोपियों को राहत, सुप्रीम कोर्ट ने किया बरी

  • रिपोर्ट : मुकेश कुमार : क्राइम एडिटर इन चीफ :नई दिल्ली 

सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात की गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामले के 06 आरोपियों को शुक्रवार को बरी कर दिया है। अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा है कि किसी मामले में मौके पर सिर्फ मौजूद होना या फिर गिरफ़्तार होना यह साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है कि वह गैरकानूनी भीड़ के हिस्सा थे।

जस्टिस पीएस नरसिंहा और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने गुजरात हाई कोर्ट के 2016 के उस फैसले को ख़ारिज कर दिया है। जिसमें गोधरा कांड के बाद 2002 में हुए दंगों के मामले में 06 लोगों को बरी करने के निचली अदालतों के फैसले को पलट दिया था।

बेंच की ओर से फैसला लिखने वाले जस्टिस मिश्रा ने कहा है कि हाई कोर्ट की तरफ से लिया गया विपरीत दृष्टिकोण पूरी तरह से अनुचित है, सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के 2003 के फैसले को बहाल करने का फैसला किया है। जिसमें 06 आरोपियों को बरी कर दिया गया था।

यह भी पढ़ें – SDO का अजब-गजब कारनामा! संविदा कर्मचारी से उठक-बैठक कराई, वीडियो वायरल

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी तरह के दोषी भूमिका के अभाव में मौके पर उनकी गिरफ़्तारी 28 फरवरी 2002 को बड़ोद में हुई घटना में उनकी संलिप्तता के बारे में निर्णायक नहीं है। खासकर तब जब उनके पास से ना तो विध्वंस का कोई हथियार बरामद हुआ और ना ही कोई भड़काऊ सामग्री बरामद हुई है।

पीठ ने कहा है कि सामूहिक झड़पों के मामले में जहां बड़ी संख्या में लोग शामिल होते हैं। अदालतों पर यह सुनिश्चित करने का भारी दायित्व होता है कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जाए और उसकी स्वतंत्रता से वंचित ना किया जाएं। जस्टिस मिश्रा ने कहा है कि ऐसे मामलों में अदालतों को सावधान रहना चाहिए और उन गवाहों की गवाही पर भरोसा करने से बचना चाहिए। जो आरोपी है उसकी भूमिका का विशेष संदर्भ दिए बिना सामान्य बयान देते हैं।

जब कहीं अपराध होता है, तो उत्सुकता में लोग अपने घर से बाहर निकलकर यह देखने लगते हैं कि आस-पास क्या हो रहा है? ऐसे लोग केवल दर्शक ही होते हैं। हालांकि, गवाह को वह गैर क़ानूनी भीड़ का हिस्सा लग सकते हैं।

बेंच ने कहा है कि इस मामले में अपीलकर्ता उसी गांव के निवासी थे, इसलिए घटनास्थल पर उनकी मौजूदगी स्वाभाविक है और अपने आप में कोई अपराध नहीं है, बेंच ने आगे कहा, क्योंकि अभियोजन पक्ष का यह मामला नहीं है कि वह हथियार या विध्वंसक उपकरण लेकर आए थे। इन परिस्थितियों में, घटनास्थल पर उनकी मौजूदगी एक निर्दोष व्यक्ति की मौजूदगी हो सकती है।

जस्टिस मिश्रा ने कहा है कि यहां ऐसा कोई साक्ष्य रिकॉर्ड में नहीं आया है। जिससे यह संकेत मिले कि अपीलकर्ताओं ने उन्हें भीड़ को उकसाया या उन्होंने खुद किसी तरह से ऐसा काम किया जिससे यह संकेत मिलें कि वह गैरकानूनी भीड़ का हिस्सा थे।

धीरूभाई लाल भाई चौहान और पांच अन्य को उसे घटना में 1 साल की जेल की सज़ा सुनाई गई थी। जिसमें कथित तौर पर भीड़ ने वडोद गांव में एक कब्रिस्तान और एक मस्ज़िद को घेर लिया था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, सभी याचिकाकर्ताओं आरोपियों को मौके से गिरफ़्तार कर लिया था।

निचली अदालत ने सभी 19 आरोपियों को बरी कर दिया था। लेकिन हाई कोर्ट ने उनमें से 06 को दोषी ठहराया। एक आरोपी की मामला विचाराधीन रहने के दौरान मौत हो गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने एक निचली अदालत के 03 के फैसले को बहाल करते हुए उन्हें बरी कर दिया था।

यह भी पढ़ें – सेंट एंथोनी पब्लिक स्कूल में एनुअल रिजल्ट डे और मेधावी छात्र सम्मान समारोह का भव्य आयोजन… देखें Video