दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला: पति का विवाहेतर संबंध ‘क्रूरता’ या ‘आत्महत्या के लिए उकसावा’ नहीं
कोर्ट ने कहा – सिर्फ एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर को अपराध की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता
- दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला: पति का विवाहेतर संबंध ‘क्रूरता’ या ‘आत्महत्या के लिए उकसावा’ नहीं
- कोर्ट ने कहा – सिर्फ एक्स्ट्रा-मैरिटल अफेयर को अपराध की श्रेणी में नहीं डाला जा सकता
मुकेश कुमार : क्राइम एडिटर इन चीफ :नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अगर किसी पति का विवाहेतर संबंध (extra-marital affair) होता है, तो उसे सीधे तौर पर ‘क्रूरता’ (cruelty) या ‘आत्महत्या के लिए उकसाना’ (abetment of suicide) नहीं माना जा सकता। यह फैसला एक महिला द्वारा अपने पति पर लगाए गए गंभीर आरोपों के संदर्भ में आया है, जिनमें पति के अफेयर को आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था।
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जानिए किस मामले पर कोर्ट ने दिया यह अहम फैसला

महिला ने आरोप लगाया था कि उसका पति किसी और महिला से संबंध में था, जिससे मानसिक तनाव में आकर उसने आत्महत्या करने का प्रयास किया। पुलिस ने पति के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। लेकिन कोर्ट ने कहा कि केवल एक्स्ट्रा मैरिटल रिलेशन को ही आत्महत्या के लिए उकसाने जैसा गंभीर आरोप नहीं बनाया जा सकता।
…तो क्या है कोर्ट की टिप्पणी
न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा की पीठ ने कहा –”किसी भी विवाहेतर संबंध को नैतिक रूप से भले ही गलत माना जाए, लेकिन उसे हर स्थिति में आत्महत्या का कारण नहीं माना जा सकता, जब तक कि इसके ठोस सबूत न हों कि आरोपी ने पीड़िता को प्रताड़ित किया या आत्महत्या के लिए उकसाया।”
फैसले की मुख्य बातें
- हाईकोर्ट ने कहा, विवाहेतर संबंध सामाजिक रूप से गलत हो सकते हैं, लेकिन कानूनन हर बार ‘क्रूरता’ या ‘उकसावे’ की श्रेणी में नहीं आते।
- आत्महत्या जैसे कदम का निर्णय कई बार व्यक्ति की मानसिक स्थिति, सामाजिक दबाव और अन्य परिस्थितियों पर भी निर्भर करता है।
- अदालत ने IPC की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 498A (क्रूरता) के तहत दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया।
कोर्ट फैसले की पृष्ठभूमि और कानूनी दृष्टिकोण

भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 और 498A को लेकर समय-समय पर कई फैसले आए हैं, लेकिन यह केस एक उदाहरण है कि कैसे कोर्ट तथ्यों के आधार पर और बिना पूर्वग्रह के फैसला लेती है। इस फैसले से यह भी स्पष्ट होता है कि विवाहेतर संबंध कानून में ‘क्राइम’ नहीं है, जब तक कि उसमें मानसिक या शारीरिक प्रताड़ना का स्पष्ट प्रमाण न हो।
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