क्या कोर्ट के पास इतनी फुर्सत है 94000 रूपए पर चर्चा करें? हाई कोर्ट की एमपी सरकार को फटकार।
वरिष्ठ अधिकारियों के फैसले से प्रभावित निचले कर्मचारी, मामले की सुनवाई इंदौर हाई कोर्ट में हुई। प्रशासनिक जज विवेक रसिया और जस्टिस गजेंद्र सिंह की खंडपीठ में सुनवाई करते हुए कहा कि कई मामले अभी तक सामने आए जिसमें विभिन्न विभागों के तृतीय और चरित्र श्रेणी कर्मचारी वरिष्ठ अधिकारियों के फैसले से प्रभावित हुए। अधिकतर मामले बढ़ा हुआ वेतनमान वापस लेने, सेवानिवृत्ति के समय वसूली, सामान लाभ न देने और पदोन्नति में देरी से जुड़े संबंधित है।
मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ ) TV 9 भारत समाचार इंदौर (मध्य प्रदेश )।
तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों को विभाग के उच्च अधिकारियों के गलत एवं अड़ियल रवैये का शिकार क्यों होना पड़ रहा है?
क्या कोर्ट के पास इतनी फुर्सत है कि वह 94 हज़ार रुपए के मामले में चर्चा करें?
मध्य प्रदेश कैबिनेट इस मामले की जांच करें!
एक मामले की सुनवाई करते हुए इंदौर हाई कोर्ट ने यह बात कहीं…….
दरअसल, पिछले दिनों चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ने एक याचिका इंदौर में लगाई थी। जिसने कर्मचारियों ने कोर्ट के समक्ष यह बात रखी कि उसके सेवानिवृत्त होने के बाद उससे 94 हज़ार रुपए वसूले गए।
उसने आरोप लगाया था कि रिटायर होने के बाद मुझे परेशान क्यों किया जा रहा हैं?
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29 नवंबर 2022 को उसने कोर्ट में याचिका लगाई थी, इस मामले को लेकर कोर्ट ने मामले की सुनवाई कर यह आदेश निकाले हैं।
वरिष्ठ अधिकारियों के फैसले से प्रभावित निचले कर्मचारी……….
मामले की सुनवाई इंदौर हाई कोर्ट में हुई। प्रशासनिक जज विवेक रूसिया और जस्टिस गजेंद्र सिंह की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए कहा कि कई मामले अभी तक सामने आएं जिसने विभिन्न विभागों के तृतीय और चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी वरिष्ठ अधिकारियों के फैसले से प्रभावित हुए हैं।
अधिकतर मामले बढ़ा हुआ वेतनमान वापस लेने, सेवानिवृत्ति के समय वसूली, समान लाभ न देने और पदोन्नति में देरी से जुड़े संबंधित है।
2018 में बनाई गई नीति का
पालन क्यों नहीं ?………
न्यायालय ने राज्य की 2018 में बनाई गई मुक़दमा नीति का हवाला दिया। जिसमें छोटे विवादों के निपटारे के लिए राज्य, जिला, विभागीय स्तर पर समिति के गठन का प्रावधान था। कोर्ट ने इस पूरे मामले में सुनवाई करते हुए आगे कहा कि ऐसा कोई मामला नहीं आया जिसमें प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारी इस तरह के विवाद लेकर हाईकोर्ट पहुंचे।
मंत्री परिषद को विचार करना चाहिए कि निचले कर्मचारियों को ही क्यों परेशान किया जा रहा है?
इस कारण से कोर्ट का बहुमूल्य समय बर्बाद हो रहा है।
साथ ही कोर्ट ने कहा कि जो नीति मध्य प्रदेश में लागू की गई है, वह नीति सिर्फ कागजों पर सीमित रह गई है!
इस मामले में एक सेवानिवृत्त चतुर्थश्रेणी कर्मचारी ने कोर्ट की शरण ली थी। जिसकी 94 हज़ार रुपए की वसूली निकाली गई थी। उसकी याचिका को सिंगल बेंच ने रद्द किया था। जिस पर शासन ने 711 दोनों की देरी से अभी तैयार की और इसके लिए देरी माफी का आवेदन भी दिया।
याचिका रद्द होने के बाद शिकायतकर्ता ने फरवरी 2024 में फिर कोर्ट में याचिका लगाई , जिस पर कोर्ट ने सुनवाई करते हुए कैबिनेट को जांच के आदेश दिए हैं।
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