महिला जज से दुर्व्यवहार करने के दोषी वकील की याचिका पर विचार करने SC का इनकार
यह मामला न्याय मूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ के समक्ष आया था। पीठ ने दिल्ली के उच्च न्यायालय के 26 मई के फैसले के ख़िलाफ़ अधिवक्ता संजय राठौर की अपील पर विचार करने से इंकार कर दिया।
महिला जज से दुर्व्यवहार करने के दोषी वकील की याचिका पर विचार करने से SC का इनकार
- रिपोर्ट : मुकेश कुमार : क्राइम एडिटर इन चीफ : नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक वकील की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया। वकील ने अक्टूबर 2015 में राष्ट्रीय राजधानी में एक महिला जज के साथ कोर्ट रूम में दुर्व्यवहार करने के लिए 18 महीने की जेल की सज़ा को चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय ने उसकी सज़ा बरकरार रखते हुए वकील को आदेश की तारीख से 15 दिनों के भीतर आत्मसमर्पण करने का आदेश दिया।
यह मामला न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ के समक्ष आया था। पीठ ने दिल्ली के उच्च न्यायालय के 26 मई के फैसले के ख़िलाफ़ अधिवक्ता संजय राठौर के अपील पर विचार करने से इनकार कर दिया गया था।
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वकील की टिप्पणियों का हवाला देते हुए पीठ ने पूछा,” एक महिला न्यायिक अधिकारी न्यायिक कार्यों को कैसे अंजाम दे सकती हैं? वह कैसे उनका निर्वहन कर सकती हैं?
शीर्ष अदालत ने वकील की नरमी बरतने की दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। वकील ने दलील दी है कि उसे अपने कृत्यों के कारण बहुत तकलीफ़ हुई हैं।
वकील कथित तौर पर ट्रैफिक चालान से जुड़े अपने मामले की सुनवाई स्थगित होने से नाराज़ था। उसने कोर्ट रूम में हंगामा किया और मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के ख़िलाफ़ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया।
उच्च न्यायालय ने कहा था कि लिंग विशिष्ट दुर्व्यवहार के माध्यम से न्यायाधीश को डराने या धमकाने वाला कोई भी कार्य न्याय पर ही हमला हैं।
उच्च न्यायालय ने 26 मई को कहा कि जब किसी ने न्यायिक अधिकारी की गरिमा को गंदे शब्दों के इस्तेमाल से ठेस पहुंचती हैं। जो उचित संदेह से परे साबित होते हैं। कानून को उस धागे की तरह काम करना चाहिए जो उसे ठीक करें।
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