उत्तराखंड में 11 स्थानों के नाम बदले: भारतीय संस्कृति और जनभावना को मिला सम्मान

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की घोषणा

रिपोर्ट : राजीव कृष्ण श्रीवास्तव : देहरादून। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए हरिद्वार, देहरादून, नैनीताल और ऊधमसिंह नगर जिलों में स्थित 11 स्थानों के नाम बदलने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि यह निर्णय जनभावना के अनुरूप लिया गया है और भारतीय संस्कृति एवं विरासत को सहेजने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

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नाम बदलने का उद्देश्य

Names of 11 places changed in Uttarakhand: Indian culture and public sentiment received respect
फोटो : उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी

मुख्यमंत्री ने कहा कि स्थानों के नाम बदलने का मुख्य उद्देश्य ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पहचान को पुनर्स्थापित करना है। उन्होंने बताया कि इस बदलाव से नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति और इतिहास से जुड़ने का अवसर मिलेगा। इसके साथ ही, यह नामकरण उन महापुरुषों और ऐतिहासिक घटनाओं को सम्मान देने का प्रयास है जिन्होंने समाज और राष्ट्र के लिए योगदान दिया।

जानिए कौन-कौन से स्थानों के नाम बदले गए?

Names of 11 places changed in Uttarakhand: Indian culture and public sentiment received respectसरकार द्वारा जिन 11 स्थानों के नाम बदले गए हैं, उनकी सूची जल्द ही आधिकारिक तौर पर जारी की जाएगी। हालांकि, सूत्रों के मुताबिक इनमें कुछ प्रमुख स्थानों के नाम शामिल हैं, जो वर्षों से बदलाव की मांग में थे।

जनता और विशेषज्ञों की प्रतिक्रिया

इस निर्णय पर जनता की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कुछ लोगों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया और इसे संस्कृति के संरक्षण की दिशा में उठाया गया सकारात्मक कदम बताया। वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि नाम बदलने से अधिक जरूरी है कि मूलभूत सुविधाओं और विकास कार्यों पर ध्यान दिया जाए।

भविष्य की योजना

मुख्यमंत्री धामी ने यह भी संकेत दिया कि आने वाले समय में अन्य स्थानों के नाम भी बदलने पर विचार किया जा सकता है, खासकर वे स्थान जिनका ऐतिहासिक या सांस्कृतिक महत्व रहा है। सरकार इस कार्य में जनता की राय भी लेगी और जनभावना के अनुरूप निर्णय लेगी।

गौरतलब हो कि उत्तराखंड में 11 स्थानों के नाम बदलने का निर्णय ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। यह फैसला न केवल जनभावना का सम्मान करता है, बल्कि भारतीय परंपरा और विरासत को संजोने में भी सहायक साबित होगा।

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