परंपराओं ने गरीब परिवारों का बहुत कुछ उजाड़ा।
"तू ताना कभी ना देता, मुझे दहेज़ का घर देख लेता, छाले मेरे पिता के हाथ पे"! समाज में कई परिवार ऐसे भी हैं जो दहेज़ लेने में विश्वास या यह सोच नहीं रखते। ऐसे परिवार काबिले तारीफ़ है। ऐसे लोग समाज के लिए एक प्रेरणा होते हैं। दहेज़ के ख़िलाफ़ ना तो कोई बोलना चाहता है, ना ही कोई सुनना चाहता है। इसमें हम सब अपना-अपना स्वार्थ देखते हैं। दहेज़ प्रथा ने ही लोगों की सोच को इतना खोखला कर दिया है कि अब कोई नई बात नहीं रह गई है।
मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ)TV 9 भारत समाचार दहेज़ प्रथा।
दहेज़ के ख़िलाफ़ ना तो कोई बोलना चाहता है, और ना ही कोई सुनना चाहता है, क्योंकि इसमें हम सब अपना-अपना स्वार्थ देखते हैं। दहेज़ प्रथा ने ही लोगों की सोच को खोखला कर दिया है। यह अब कोई नई बात नहीं रह गई है। दहेज़ एक सामाजिक बुराई है और इसके लिए बहुत ही जघन्य अपराध होते हैं।
इस समाज में विवाहों में दहेज़ को भेंट के रूप में देखा जाता है, लेकिन इसकी वज़ह से बहुत से घर बिखर जाते हैं। परंपरा के इस पहलू ने गरीब परिवारों का बहुत कुछ उजाड़ा है। समाज में बहुत से परिवार ऐसे होते हैं, जो पहले दहेज़ तो नहीं लेते हैं, लेकिन शादी हो जाने के बाद लड़की को दहेज़ के लिए बहुत ही परेशान करते हैं।
दहेज़ प्रथा महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध को भी जन्म देती है। इसमें भावनात्मक शोषण और चोट से लेकर मौत तक शामिल हैं।
सरकार ने दहेज़ प्रथा को हटाने के लिए कानून तो लागू कर दिया है लेकिन दहेज़ लेना बंद नहीं हुआ है। क्या सरकार और समाज को इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत कभी लगती है?
दहेज़ को समाप्त करना है तो लोगों की सामाजिक और नैतिक चेतना को प्रभावी बनाना होगा। महिलाओं को शिक्षा तथा आर्थिक स्वतंत्रता प्रदान करना होंगा, और दहेज़ प्रथा के ख़िलाफ़ कानून को प्रभावी ढंग से लागू करना होंगा।
समाज में आज हर तरफ़ दहेज़ की मारामारी है। ऐसे में कई परिवार ऐसे भी हैं जो दहेज़ लेने में विश्वास या सोच नहीं रखते हैं।
ऐसे परिवार वास्तविकता में काबिले तारीफ़ होते हैं। यह परिवार समाज के लोगों के लिए एक प्रेरणा होते हैं। साथ ही दहेज़ लोभियों के लिए एक अच्छी सीख होते हैं।
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