राज्यपाल ने ख़ारिज की दुष्कर्म और हत्या के दोषियों की दया याचिकाएं, कारागार विभाग को दिए कड़े निर्देश
राजभवन ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि दुष्कर्म जैसे संवेदनशील मामलों में अत्यंत सावधानीपूर्वक विचार के बाद ही भेजी जाएं। हाल ही में जारी शासनादेशों के अनुसार चार प्रमुख मामले में दोषियों की समय पूर्व पर्याय की मांग को खारिज किया गया। इनमें से एक मामला केंद्रीय कारागार नैनी , प्रयागराज में बंद छोटे कांछी का है। उसे साल 2002 में 5 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के लिए आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी। दया याचिका समिति ने इस अपराध को विक्रांत और समाज के विरुद्ध करार देते हुए रिहाई की संस्तुति नहीं की।
राज्यपाल ने ख़ारिज की दुष्कर्म और हत्या के दोषियों की दया याचिकाएं , कारागार विभाग को दिए कड़े निर्देश
- रिपोर्ट : मुकेश कुमार : क्राइम एडिटर इन चीफ : लखनऊ , उत्तर प्रदेश।
उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने दुष्कर्म और हत्या जैसे जघन्य अपराधों में आजीवन कारावास की सजा काट रहें दोषियों की दया याचिकाओं को खारिज कर दिया है।
इन दोषियों ने भारत के संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत अपनी शेष सज़ा को माफ़ करने की गुहार लगाई थी।
राज्यपाल में अपराधों की गंभीरता और समाज पर उनके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए याचिका को अस्वीकार कर दिया है।
राजभवन ने सरकार को निर्देश दिए हैं कि दुष्कर्म जैसे संवेदनशील मामलों में दया याचिकाएं सावधानीपूर्वक विचार के बाद ही भेजी जाएं। हाल ही में जारी शासनादेशों के अनुसार, चार प्रमुख मामले में दो दोषियों की समय पूर्व रिहाई की मांग को खारिज किया गया है।
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इनमें से एक मामला केंद्रीय कारागार नैनी, प्रयागराज में बंद छोटे कांछी का है। उसे साल 2002 में 5 वर्षीय बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। दया याचिका समिति ने इस अपराध को घृणित और समाज के विरुद्ध करार देते हुए रिहाई की संस्तुति नहीं की।
शासनादेश में कहा गया है कि ऐसे अपराधों की समय पूर्व रिहाई से न्यायिक प्रणाली के प्रति गलत संदेश जाएंगा। इसी तरह आदर्श कारावास लखनऊ में निरूद्ध इंद्रबली, जो अपनी पत्नी और बच्चों की हत्या के लिए सज़ा काट रहा हैं। उसकी भी दया याचिका ख़ारिज कर दी गई है।
प्रोबेशन बोर्ड ने माना है कि इस तरह के अपराधी की रिहाई से समाज में नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। बाराबंकी जिला कारागार में बंद कल्प को नारायण शर्मा, जिसे 2005 में शराब ठेके के सेल्समेन की हत्या के लिए आजीवन कारावास मिला है।
उसकी भी रिहाई की मांग अस्वीकार की गई है।
एक मामले में केंद्रीय कारागार फतेहगढ़ में बंद रामकिशन की शेष सज़ा को माफ़ कर उनकी रिहाई का आदेश दिया गया है। रामकिशन को 2011 में हत्या और आपराधिक धमकी के लिए सज़ा मिली थी।
उसने 12 वर्ष की न्यायिक अभिरक्षा और 14 वर्ष की सज़ा भोग ली थी। उसका जेल आचरण संतोषजनक पाया गया है। उनके अपील उच्च न्यायालय में लंबित है। राज्यपाल में ₹50,000 के निजी मुचलके पर उनकी रिहाई को मंजूरी दी।
उन्हें किसी अन्य मामले में निरूद्ध ना रखा जाएं। राज भवन के इस कड़े रुख से स्पष्ट है कि जघन्य अपराधों में शामिल दोषियों के लिए दया की गुंजाइश कम है। जेल एवं सुधार विभाग संयुक्त सचिव शिव गोपाल सिंह ने बताया कि बलात्कार और हत्या जैसे मामले में दया याचिकाओं पर विचार करने से पहले स्थानीय स्तर पर गहन जांच और उच्चतम न्यायलय के दिशा निर्देशों का पालन अनिवार्य है।
यह फैसला समाज में न्याय और कानून के प्रति विश्वास को मजबूत करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जाता है। राज्यपाल ने बलात्कार और हत्या के मामले में रियायत बरतने से इनकार किया हैं।
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