TASMAC घोटाला : बिना सबूत की गई छापेमारी पर कोर्ट ने लगाई ED को फटकार

सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति पी. वेलमुरूगन ने पाया कि इस मामले की प्राथमिकी में पीड़िता का नाम और पता स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया है। जोकि सुप्रीम कोर्ट के स्पर्श निर्देशों का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट में पहले ही तय कर दिया है कि यौन उत्पीड़न से जुड़े किसी भी मामले में पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

TASMAC घोटाला : बिना सबूत की गई छापेमारी पर कोर्ट ने लगाई ED को फटकार

  • रिपोर्ट  : मुकेश कुमार : क्राइम एडिटर इन चीफ : चेन्नई।

मद्रास उच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न संवेदनशील मामलों को लेकर एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए तमिलनाडु के पुलिस महानिदेशक और चेन्नई मेट्रोपॉलिटन पुलिस कमिश्नर को सख्त निर्देश दिया गया है कि यौन अपराधों की जांच के दौरान पीड़ित की किसी भी रूप में उजागर ना किया जाएं।

अदालत ने स्पष्ट किया है कि अगर इस आदेश का उल्लंघन हुआ, तो संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही की जाएगी।

एफआईआर में पीड़िता का नाम और पता शामिल करने पर अदालत की नाराजगी….

यह मामला एक याचिका के तहत सामने आया है, जिसे चेन्नई के किलपौक पुलिस स्टेशन में दर्ज यौन उत्पीड़न मामले से जुड़े आरोपियों ने दायर किया था। याचिकाकरता ने अदालत से अनुरोध किया था कि पुलिस को निर्देश दिया जाए कि वह जल्द से जल्द जांच पूरी करें, और संबंधित अदालत में अंतिम रिपोर्ट दाखिल करें।

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सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति  पी. वेलमुरूगन ने पाया था कि इस मामले की प्राथमिक की में तीव्रता का नाम और पता स्पष्ट रूप से दर्ज किया गया, जो कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही तय कर दिया था कि यौन उत्पीड़न से जुड़े किसी भी मामले में पीड़िता की पहचान को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए – चाहे वह नाम हो, पता हो, या कोई अन्य संकेत हो।

न्यायालय ने जताई गंभीर चिंता 

न्यायमूर्ति वेलमुरूगन ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि यह बेहद गंभीर मामला है कि सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद, पुलिस अधिकारी अब भी FIR में पीड़िता की पहचान दर्ज कर रहे है, उन्होंने यह कहा है कि किलपौक पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिक की पीड़िता की जानकारी तत्काल हटाई जाए,

यह सुनिश्चित किया जाए कि भविष्य में ऐसा कोई उल्लंघन ना हो। तमिलनाडु के सभी पुलिस स्टेशनों में कार्यरत अधिकारी को यह आदेश दिया जाए कि वह यौन अपराधों की जांच के दौरान किसी भी स्थिति में पीड़िता की पहचान उजागर न करें।

महिलाओं और बच्चों से संबंधित यौन अपराधों को अत्यंत संवेदनशीलता और गोपनेता के साथ संभाला जाए.

सुनवाई के दौरान,  पुलिस विभाग की ओर से पेश वकील ने बताया कि इस मामले में अंतिम रिपोर्ट पहले ही संबंधित अदालत में दाखिल की जा चुकी है। इस जवाब के बाद न्यायमूर्ति ने याचिका को बंद कर दिया, लेकिन अपने निर्देशों को स्पष्ट रूप से आदेश का हिस्सा बना दिया।

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