युवती ने लगाया था, दो बार दुष्कर्म का आरोप, फिर भी बरी हो गया आरोपी।

दुष्कर्म के आरोप में सेशन कोर्ट से दोष मुक्त किए जाने के बावजूद एससी-एसटी एक्ट और जबरन घर में घुसने के आरोप में 2 वर्ष के कारावास की सजा से दंडित किए जाने को चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में अपील तैयार की गई थी। पीड़िता द्वारा भी दुष्कर्म के आरोप में दोष मुक्त किए जाने के विरुद्ध अपील दायर की गई थी। हाई कोर्ट ने दोनों अपीलों की संयुक्त सुनवाई करते हुए आदेश सुनाया।

मुकेश कुमार (क्राइम एडिटर इन चीफ)TV 9 भारत समाचार जबलपुर (मध्य प्रदेश )।

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और न्यायमूर्ति अनुराधा पांडे युगल पीठ ने अपने एक आदेश में कहा है कि डीएनए रिपोर्ट मैच न होने के आधार पर दुष्कर्म के आरोप में दोष मुक्त किया जाना सही है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि आरोपी शिकायतकर्ता के घर में जबरन घुसा था, जिसके लिए उसे सज़ा सुनाई जा चुकी है। वह 92 दिन जेल में गुजार चुका है। यह सज़ा पर्याप्त है।

दरअसल, दुष्कर्म के आरोप में सेशन कोर्ट से दोष मुक्त किए जाने के बावजूद एससी -एसटी एक्ट व जबरन घर में घुसने के आरोप में 2 वर्ष के कारावास की सज़ा से दंडित किए जाने को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में अपील दायर की गई थी। हाई कोर्ट ने दोनों अपीलों की संयुक्त सुनवाई करते हुए आदेश सुनाया।

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युवक पर लगाए गए थे ये आरोप……..

✍️… नरसिंहपुर निवासी युवक की ओर से दायर अपील में कहा गया था कि शिकायतकर्ता ने उसके विरुद्ध आरोप लगाए थे कि वह उसके घर में जबरदस्ती घुस गया था। शिकायतकर्ता के साथ उसने दो बार दुष्कर्म किया।

✍️… इसके बाद वह शिकायतकर्ता को धमका रहा था। इसी दौरान उसकी बड़ी बहन आ गई। उसके जाने के बाद शिकायतकर्ता ने अपनी बड़ी बहन तथा परिवार के अन्य सदस्यों घटना की जानकारी देते हुए रिपोर्ट दर्ज़ करवाई।

✍️… पुलिस ने आरोपी के विरुद्ध दुष्कर्म सहित अन्य धाराओं के अंतर्गत प्रकरण दर्ज़ किया था। अपील में कहा गया है कि सेशन कोर्ट ने डीएनए रिपोर्ट मेल ना होने पर पीड़िता को कोई बाहरी चोट ना आने के कारण उसे दोष मुक्त कर दिया था।

✍️… सेशन कोर्ट ने पाया था कि घटना का कोई गवाह नहीं है। हाई कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि समाज की पंचायत में आरोपित के पिता ने आरोप लगाए थे कि शिकायतकर्ता और उसके बेटे के बीच में प्रेम संबंध थे।

✍️… इस दौरान शिकायतकर्ता ने उन पर चप्पल फेंकी थी। जिससे स्पष्ट है कि दोनों के बीच दुश्मनी थी। शिकायतकर्ता के स्वजनों ने घटना के दिन घर के बाहर आरोपी के साथ मार-पीट की थी।

बिना अनुमति घर गया, इसकी सज़ा मिलीं…….

आरोपित किसी अपराध के इरादे से पीड़ित के घर नहीं गया था। इसलिए उसके विरुद्ध धारा एसटीएससी और अन्य धारा का अपराध नहीं बनता है। आरोपी बिना अनुमति पीड़िता के घर गया था जो धारा- 448 के तहत अपराध है। हाई कोर्ट ने शिकायतकर्ता की अपील निरस्त करते हुए उक्त आदेश जारी कर दिए हैं।

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