फर्जी मुकदमों के खिलाफ पत्रकारों का हल्ला बोल

सुभाष चौक पर पत्रकारों ने दिया धरना, पुलिसिया तानाशाही के विरोध में गरजे कलमकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारिता की गरिमा बचाने की उठी आवाज

  • फर्जी मुकदमों के खिलाफ पत्रकारों का हल्ला बोल
  • सुभाष चौक पर पत्रकारों ने दिया धरना, पुलिसिया तानाशाही के विरोध में गरजे कलमकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और पत्रकारिता की गरिमा बचाने की उठी आवाज

रिपोर्ट : शीतल सिंह : देवरिया। सलेमपुर थाना क्षेत्र में पत्रकारों पर दर्ज किए गए फर्जी मुकदमों के विरोध में आज स्थानीय पत्रकारों का आक्रोश फूट पड़ा। बड़ी संख्या में पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय नागरिक सुभाष चौक पर एकत्र हुए और धरना-प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में भाग ले रहे पत्रकारों का कहना था कि सच दिखाने की कीमत उन्हें मुकदमों के रूप में चुकानी पड़ रही है।

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“सच दिखाओ – मुकदमा पाओ!”

Speaking of journalists against fake cases

प्रदर्शन कर रहे पत्रकारों ने कहा कि “पुलिस प्रशासन मनमाने तरीके से पत्रकारों पर मुकदमा दर्ज कर रहा है। बिना किसी जांच के, बिना तथ्यों की पुष्टि किए जिसे चाहे, जब चाहे मुकदमे में घसीटा जा रहा है। यह सीधे-सीधे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला है।”

हो निष्पक्ष जांच, बंद हो उत्पीड़न

प्रदर्शन कर रहे पत्रकारों ने मांग की कि फर्जी मुकदमे की जांच करवाई जाए। पत्रकारों ने कहा दोषी पुलिसकर्मियों और अधिकारियों पर कार्रवाई हो। पत्रकारों को बिना कारण प्रताड़ित करने की प्रवृत्ति पर लगाम लगे साथ ही मीडिया को स्वतंत्र रूप से कार्य करने दिया जाए।

एकजुट हुए पत्रकार और समाज के लोग

धरना स्थल पर सैकड़ों की संख्या में मीडिया कर्मी मौजूद थे। इसके अलावा, सामाजिक कार्यकर्ता और क्षेत्रीय लोग भी पत्रकारों के समर्थन में सड़कों पर उतरे। सभी ने एकजुट होकर कहा कि “पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, इसे कमजोर नहीं होने देंगे।”

पत्रकारों की प्रमुख मांगें:

  • फर्जी मुकदमे की सीबीसीआईडी या स्वतंत्र एजेंसी से जांच
  • पत्रकार सुरक्षा कानून लागू करने की पहल
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना
  • पत्रकारों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाई पर रोक

प्रशासन को चेतावनी

पत्रकारों ने उच्च अधिकारियों से हस्तक्षेप की मांग की है और चेतावनी दी है कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो जिला स्तर पर बड़ा आंदोलन शुरू किया जाएगा।

यह प्रदर्शन केवल कुछ पत्रकारों की नहीं, बल्कि पत्रकारिता की गरिमा और लोकतंत्र की रक्षा के लिए था। अब सवाल यह है कि प्रशासन कब तक इस आक्रोश को अनदेखा करेगा और क्या पत्रकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएंगे?

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